द गर्ल इन रूम 105–२०
'हैदराबाद।'
'ओह, तो तुम कहीं बाहर चलना चाहती हो?"
'ओह, कोई भूल गया है कि वह कैसे पेड़ पर चढ़कर मुझे विश करने आता था।"
'हाहा, वह कई साल पुरानी बात है।' *मैं उन दिनों को मिस करती हूं।'
"मैं भी ।'
"शायद तुम अब वो सब नहीं कर सकोगे।"
"ERIT?'
'इट्स ओके, मत आओ।"
"मैं आ सकता है। मैं आ रहा है। अभी।'
"बहुत देर हो गई है और बहुत सर्दी भी है। फिर इसमें जोखिम भी है। तुम भी अब स्टूडेंट नहीं रहे।"
"क्या तुम्हारा रूम नंबर अब भी 105 है? आम के पेड़ के सामने?" 'इट्स ओके के हम बाद में मिल लेंगे।"
उसने बहुत सालों बाद मुझे के कहकर पुकारा था। मैंने इसे कितना मिस किया था।
'मुझे अपना रूम नंबर बताओ, जारा।"
*ऑफ कोर्स 105, मुझे अपने रूम से प्यार है।' 'आधे घंटे में मिलते हैं।""
उसने एक ग्रिन स्माइली भेजा। वह मुझे अच्छी तरह जानती थी। उसे मालूम था कि मैं उससे मिलने का
कोई मौका कभी नहीं छोड़ता था।
मैंने फ़ोन जेब में रखा। सौरभ सोफे पर लेटा हुआ था। "वेक अप, हमें चलना होगा, मैं उसके कान में ज़ोर से चिल्लाया और उसका कधा झकझोर दिया।